रुका हुआ फैसला
हम जिन्दगी में हर कदम पे इतना क्यों सोचते और विचारते है ? इस सोच के आधार पर ही हम आगे भविष्य की योजनाये बनाते है और उन्ही योजनाओं को एक रूप देने के लिए प्रयत्न करने लगते है 1 लेकिन क्या यैसा संभव हो पता है ..............शायद नहीं 1 फिर यैसी आपा धापी क्यों ? हम जीवन की एक दौड़ में शामिल हो जाते है और जीवन में दिशाहीन होकर रह जाते है जब हम रुकते है तो पता चलता है की सब बाते और रिश्ते बेमानी थे 1 हाथ तो दोनों खाली है इस भाग दौड़ में क्या पाया और क्या खोया इसका पता ही नहीं चला और पूरा जीवन यैसे ही बीत गया , कितनी ऋतुये आई और चली गयी कितने बसंत बीत गए अचानक एक दिन विराम सा लग गया और हम तब जीवन की व्याख्या करते है हानि और लाभ तब पाया की पाया तो कुछ नहीं बस देते ही देते जीवन बीत गया अपने जीवन की कोई दिशा सही नहीं मिली 1 तब लगा की अब बाकी जीवन को एक लक्ष्य मिलना चाहिए 1
अपने मन के अंदर तो देखे ........वहा एक प्रकाश है जो शायद दूसरो का जीवन प्रकाशित केर सके 1 वो एक नई रौशनी थी जो आत्म मंथन से निकली थी बस यही से जीवन को एक आधार मिल गया 1 जीवन तो सभी जीते है अपने लिए और यही काम पशु भी करते है तो हमको तो ईश्वर ने बुधि और ज्ञान दोनों ही दिया है तो हमको इसका पूरा उपयोग करना चाहिए 1 हमको वो सब करना चाहिए जिससे हमारे आस पास के लोगो को सुख और प्रस्स्नता मिले जिससे हमारे अंदर के मनुष्य को आत्मिक सुख मिले और एक हम एक अनोखे आनंद का अनुभव करे 1
GOOD NOTE AKANKSHI JI, YES, THIS IS THE REAL DIFFERENCE IN THE AIM AND HAPPINESS IN THE LIFE OF OTHER LIVING BEING AND THE LIFE OF HUMAN BEING!!!!!!!
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