दरमियाने -ये - मंजिल
न दर्द -ओ -गम , न शिकवा , न इजतराब ओ - जुनू
मोहब्बते थी मगर कोई यादगार न थी
वक़्त का दरिया कुछ येसी रफ़्तार से चलता है की वो वो अपने आगे निकल जाने का एहसास ही नहीं पता चलने देता है | पहली सांस से जो सिलसिला शुरू होता है वो अपनी आखिरी दम तक चलता है या बीच रास्ते में कोई ठोकर लगने से पता चलता है की शायद यहाँ कम हो गयी या मंजिल ही आ गयी ?? लेकिन मंजिल है कहाँ ये तो पता नहीं है बस सफ़र पे चल दिए और मदहोशी के आलम में यह भी भूल गए की मंजिल का इल्म तो है जायेगे कहाँ ? ये मदहोशी है क्या जो हम इतने बदगुमान हो गए | ये है हमारी जिम्मेदारिया हमारे अपनों की जिसने कभी ये इल्म होने ही नहीं दिया की .....ये जिन्दगी कुछ तुम्हारी भी है इसके ऊपर तुम्हारा भी कुछ हक़ बनता है | कुछ लम्हे है जो सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे हो सकते थे लेकिन तुमने ये हक भी जिन्दगी को नहीं दिया | अब अगर वो तुमसे सवाल करती है तो क्या जवाब है तुम्हारे पास |
आज जब वक़्त सामने है तो याद आता है की हम भूल ही गए थे की वक़्त भी कभी रुकता नहीं और शायद दोबारा मौका देता है और तब दूर से खड़ा होकर देखकर मुस्कुराता है और कहता है की जब हम थे तुमने न कदर की आज तुमने मुझे पुकारा तो में नहीं तुम्हारे साथ हूँ | इसी को कहते है वक़्त का तकाजा |
लोगो की महफ़िल , ह्मराजो का साथ मस्रोफियत का आलम था कभी ये खायलो में भी ये गुमान न था की ये सब तो वक़्त के साथ बदल जायेगा और जो आपके है उनसे एक फासला हो जायेगा | ये दरमियान भी होते है अपनों के बीच ............पता न था | वो वक़्त एक बहार के झोके की तरह आया और गया भी क्योकि बहार के बाद ही तो खिजां आती है |
दिल बना दोस्त तो क्या क्या सितम उसने किये
हम भी दाना थे निभाते रहे नादाँ के साथ
ज़माने को समझना है तो यहाँ के दस्तूर के मुताबिक ही चलना होता है | यकीन और मोहब्बत से जरा परहेज कर लीजिये क्योकि इन पे यकीन करना ही हिमाकत है | जिन्दगी आपको सारे रंग दिखा देती है और आपका अपना रंग बदरंग हो जाता है जब अपने ही बेगाने से नजर आने लगते है | आप बस अपने को अपना सबसे बड़ा हमदर्द समझिये क्योकि आपकी अपनी अन्दूरी ताकत ही आपका वजूद को खड़ा करने में आपकी सबसे बड़ी ताकत होगी | ये जानते तो सब लोग है लेकिन समझते जरा देर से है | लोग आपको अपनी रूहानियत तक पहुँचने नहीं देते है शायद लोगो को दूसरो का मसीहा बनने का शौक होता है | क्योकि अगर आप किसी के सामने ग़मगीन नजर नहीं आते है तो कोई आपकी तकलीफ नहीं समझता है और वो आपकी ख़ुशी बर्दाश्त नहीं कर पता है | ज़माने का यही एक और चेहरा की हम अपने गम से नहीं आपकी ख़ुशी से परेशांन हो जाते है |
'' लोग अपने से होते है पर अपने नहीं होते ''
इसमें मलाल की कोई बात नहीं है ये तो दुनिया है यहाँ हर किस्म के लोग होते है कुछ रिश्तो के लिए ईमान्दार और कुछ बेदर्द किस्म के तो क्या हुआ हम तनहा ही तो आये थे इस ज़माने में फिर किसी हमसफ़र की तलाश क्यों ? वो उपरवाला तो हमेशा हम पे अपनी निगाह रखता है बस और इससे बढकर क्या चाहिए | हर शक्स जुदा है एक दुसरे से तो उसके खयालात भी मुख्त्क्लीफ़ होगे तो जाहिर है बीच में कुछ दरमियान होगे | बस इतना जान लीजिये की ये सफ़र आपका है और आपको ही निभाना है तो बस हसी ख़ुशी सफ़र काटिए | हमको रोज उपरवाले का शुक्रिया अदा करना चाहिए की हम लोग बहुत लोगो से बेहतर हालत में जिन्दगी गुजार रहे है | ये वजह
भी खुश रहने के लिए कम नहीं है |
देखनेवालो मेरी ख़ामोशी -या लब न देख
आँखों ही आँखों में फ़साना कह देता हूँ में
न दर्द -ओ -गम , न शिकवा , न इजतराब ओ - जुनू
मोहब्बते थी मगर कोई यादगार न थी
वक़्त का दरिया कुछ येसी रफ़्तार से चलता है की वो वो अपने आगे निकल जाने का एहसास ही नहीं पता चलने देता है | पहली सांस से जो सिलसिला शुरू होता है वो अपनी आखिरी दम तक चलता है या बीच रास्ते में कोई ठोकर लगने से पता चलता है की शायद यहाँ कम हो गयी या मंजिल ही आ गयी ?? लेकिन मंजिल है कहाँ ये तो पता नहीं है बस सफ़र पे चल दिए और मदहोशी के आलम में यह भी भूल गए की मंजिल का इल्म तो है जायेगे कहाँ ? ये मदहोशी है क्या जो हम इतने बदगुमान हो गए | ये है हमारी जिम्मेदारिया हमारे अपनों की जिसने कभी ये इल्म होने ही नहीं दिया की .....ये जिन्दगी कुछ तुम्हारी भी है इसके ऊपर तुम्हारा भी कुछ हक़ बनता है | कुछ लम्हे है जो सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे हो सकते थे लेकिन तुमने ये हक भी जिन्दगी को नहीं दिया | अब अगर वो तुमसे सवाल करती है तो क्या जवाब है तुम्हारे पास |
आज जब वक़्त सामने है तो याद आता है की हम भूल ही गए थे की वक़्त भी कभी रुकता नहीं और शायद दोबारा मौका देता है और तब दूर से खड़ा होकर देखकर मुस्कुराता है और कहता है की जब हम थे तुमने न कदर की आज तुमने मुझे पुकारा तो में नहीं तुम्हारे साथ हूँ | इसी को कहते है वक़्त का तकाजा |
लोगो की महफ़िल , ह्मराजो का साथ मस्रोफियत का आलम था कभी ये खायलो में भी ये गुमान न था की ये सब तो वक़्त के साथ बदल जायेगा और जो आपके है उनसे एक फासला हो जायेगा | ये दरमियान भी होते है अपनों के बीच ............पता न था | वो वक़्त एक बहार के झोके की तरह आया और गया भी क्योकि बहार के बाद ही तो खिजां आती है |
दिल बना दोस्त तो क्या क्या सितम उसने किये
हम भी दाना थे निभाते रहे नादाँ के साथ
ज़माने को समझना है तो यहाँ के दस्तूर के मुताबिक ही चलना होता है | यकीन और मोहब्बत से जरा परहेज कर लीजिये क्योकि इन पे यकीन करना ही हिमाकत है | जिन्दगी आपको सारे रंग दिखा देती है और आपका अपना रंग बदरंग हो जाता है जब अपने ही बेगाने से नजर आने लगते है | आप बस अपने को अपना सबसे बड़ा हमदर्द समझिये क्योकि आपकी अपनी अन्दूरी ताकत ही आपका वजूद को खड़ा करने में आपकी सबसे बड़ी ताकत होगी | ये जानते तो सब लोग है लेकिन समझते जरा देर से है | लोग आपको अपनी रूहानियत तक पहुँचने नहीं देते है शायद लोगो को दूसरो का मसीहा बनने का शौक होता है | क्योकि अगर आप किसी के सामने ग़मगीन नजर नहीं आते है तो कोई आपकी तकलीफ नहीं समझता है और वो आपकी ख़ुशी बर्दाश्त नहीं कर पता है | ज़माने का यही एक और चेहरा की हम अपने गम से नहीं आपकी ख़ुशी से परेशांन हो जाते है |
'' लोग अपने से होते है पर अपने नहीं होते ''
इसमें मलाल की कोई बात नहीं है ये तो दुनिया है यहाँ हर किस्म के लोग होते है कुछ रिश्तो के लिए ईमान्दार और कुछ बेदर्द किस्म के तो क्या हुआ हम तनहा ही तो आये थे इस ज़माने में फिर किसी हमसफ़र की तलाश क्यों ? वो उपरवाला तो हमेशा हम पे अपनी निगाह रखता है बस और इससे बढकर क्या चाहिए | हर शक्स जुदा है एक दुसरे से तो उसके खयालात भी मुख्त्क्लीफ़ होगे तो जाहिर है बीच में कुछ दरमियान होगे | बस इतना जान लीजिये की ये सफ़र आपका है और आपको ही निभाना है तो बस हसी ख़ुशी सफ़र काटिए | हमको रोज उपरवाले का शुक्रिया अदा करना चाहिए की हम लोग बहुत लोगो से बेहतर हालत में जिन्दगी गुजार रहे है | ये वजह
भी खुश रहने के लिए कम नहीं है |
देखनेवालो मेरी ख़ामोशी -या लब न देख
आँखों ही आँखों में फ़साना कह देता हूँ में
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