Wednesday, 23 November 2011

भूले .......... जो हम नित्य करते है
हमारे जीवन की सबसे बड़ी भूल ये है की हम जो वास्तविकता है उसे स्वीकार नहीं करते है और जब स्वीकार ही नहीं करते है तो उसका सुधार कैसे करेगे | ये वास्तविकता क्या है ? ये हमारे जीवन के दुःख सुख और हमारी अपनी सोच जिसके ही कारण हम जाने अनजाने में इतनी भूले करते है की कुछ समय के बाद आप चाहे भी तो उसको सुधार नहीं सकते है . | ये हमारे ही द्वारा की गयी छोटी छोटी गलतियों के बड़े बड़े परिणाम होते है | तब हम भाग्य को दोष देते है किन्तु ये बिलकुल अनुचित है |हम अपने ही कर्मो से अपना भाग्य बनाते है और बिगाड़ते है या ये भी कह सकते है की हमारा प्रारब्ध ही यैसा है लेकिन प्रारब्ध भी तो हमारे द्वारा ही निर्मित है इसलिए पहेले अपने अंदर देखे की क्या हमारे आचरण में त्रुटी है फिर अपने को ही सुधारने का प्रयत्न करे | इसके पश्चात् जो भी परिणाम हो uske अनुसार ही जीवन की शैली को बनाये |
वास्तव में हम जिसे जीवन जीना कहते है वो जीवन हमने जिया नहीं वो तो एक स्वप्न था और स्वप्न तभी आते है जन हम निंद्रा में होते है |
जीवन को जीने और जानने के लिए जागना आवशयक है जो जागा नहीं वह जीने के भ्रम में होता है. और भ्रम से जीवन नहीं व्यतित होता है | सब कुछ हमारे ही पास है लेकिन हम कुछ देख नहीं पाते है कारण है जीवनरूपी शीशे पर धूल सी जमी है उसे ही तो हटाना है तभी तो सत्य और असत्य का हमे ज्ञान होगा और विचारो में परिवर्तन आएगा और हम नीचे से ऊपर की ओर जायेगे | सारा ज्ञान का धन हमारे ही पास है बस एक चाभी की आवशयकता है | जैसे एक बार एक भिखारी रोज एक ही जगह पर बैठकर भीख मांगता था बेचारे को लोग कुछ दे देते थे दया भाव से वो भी जैसे तैसे अपना जीवन काट रहा था एक दिन वो बीमार हो गया और कुछ दिन बाद उसकी मित्यु हो गयी उस के पास तो कुछ भी नहीं था लोगो ने कुछ पैसे जोडकर उसका अंतिम संस्कार कर दिया | कुछ समय बाद वहां कुछ निर्माण होने लगा और खुदाई शुरू हो गयी तो उसी जगह पर जहाँ फकीर बैठता था वहां बहुत बड़ा खजाना मिला | लेकिन उसके भाग्य में तो भीखारी ही रहेना लिखा था तो खजाने पे बस बैठा ही रहा उसी तरह हम लोग भी है सब जानते है की जीवन का सत्य क्या है लेकिन आँखें नहीं खोल रहे है की सत्य को पहचाने |
यैसी ही स्थिति में क्या हेर एक मनुष्य नहीं है ? पर क्या वो भूले नहीं कर रहा है और जीवन में लूट नहीं रहा है ? सम्पति से नहीं वरन अपने जीवन के मधुर संगीत से लूट रहा है | एक दिन मेरी एक मित्र ने मुझसे पुछा की जीवन में अब क्या बचा है मैंने , की क्यों अभी गया ही क्या है अपनी आत्मा के मधुर संगीत को बचा लो अगर ये नहीं बचा तो सब कुछ समाप्त होने की दिशा में चला जायेगा | ये हमको स्मरण रखना चाहिए की स्वयं के संगीत से बढकर कोई सम्पति नहीं है |
हम भी उसी भिखारी की तरह है अपनी प्रसन्ता के लिए दूसरो पर निर्भर रहते है क्यों? हम क्यों ये कहते है की दूसरो को भी हमारी बात पसंद आये और जब वो हमारी प्रशंसा करे तो हम प्रसन्न हो जाए | यहाँ दो बाते सामने आती है पहली ये की हम ही आस में बैठे है और दूसरी ये की हम परोछ रूप से दुसरे का व्यवहार निष्चित कर रहे है ये दोनों ही बाते सर्वदा अनुचित है | हमे ये सोचना चाहिए की हम अपने ही अंदर छुपी संपदा को बहार लाये और दूसरो से कोई अपेक्छा न करे क्योकि जहाँ आशा होती है वहीँ निराशा भी होती है और जब निराशा होती है तो दुःख और हताशा भी होती है | तो बस एक भाव होना चाहिए की हम ही सम्पुर्ण है | हमारे भाव , विचार और कर्म .......इन तीनो की संधि ही हमें निर्मित करती है | जीवन हमें बहुत से अवसर देता है अपने को जानने के लिए लकिन अगायांताव्श हम उसे गवां देते है यही भूल हम बार बार करते है | हमको एक बात सदा याद रखनी चाहिए ये मानव जीवन अनमोल है किसी कारण से हमने जनम लिया है इसलिए ..............
योगस्थ कुरु कर्मादी
योग में स्थिर होकर बस कर्म करते रहो जीवन अपनी सही दिशा स्वयं ही पा लेगा | हमारा जीवन देहरी पे रखे दीपक के सामान होना चाहिए जो अंदर और बहार सामान रूप से प्रकाश करता है और अपना संतुलन बनाये रखता है | यही सही मार्ग है यैसा ही हमारे शास्त्र हमे सिखाते है |
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1 comment:

  1. Aapke blogs achche hone ke saath-saath ek soch kaa beej bo dete hain mann mein. Kai aise sawaal khade ho jaate hain jinke jawab hame khud mein hi talash karne hote hain.Jawab mil jayen tau hum apni pehchaan mein ek kadam aage aur agar nahi tau kam-se-kam manthan hame uss pehchan ke aur kareeb hi le jaye. Ab dekhiye aapne beej daal diya hai tau hamare andar se bhi baatein nikalti ja rahi hain. Khair,main ye maanti hun ki aapke prashansak aapka likha hua aur padhna chahenge aur alochak bhi,kyunki uske liye bhi likhna padega.

    'Aur' ...ke intezaar mein !!!

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